शहीद की वेदना
शहीद की वेदना
शहीद की वेदना
सोचा था घर वापस आना है
आँगन का पेड़ कटवाना है
एक छोटा सा कमरा बनवाना है।
अम्मा जो रूठी बैठी है
कमरा जो उसका टूटा है
अबकी बार उसे भी बनवाना है
रूठी माँ को भी मनाना है
अबकी बार घर जो जाना है।
चुप – चुप अम्मा मेरी रहती है
लगता की सबसे वो रूठी है
पर पूछती रहती बार – बार
की कब आएगा तू मेरा लाल
छोड़ दे अब ये नौकरी
पेंशन से काम चला लेना
अबकी बार पक्का घर आ जाना
आते वक्त भागवत गीता घर ले आना
रोज -रोज मैं पाठ करूँगी
अबकी बार घर आ जाना।
पर कैसे बताऊँ अब मैं अपना हाल
कुछ माह जो शेष बचा है
साहब ने थोड़ा लाभ कहा है
ऐसे में न तू घर जा
बिटिया तेरी बड़ी हो गई
कब उसका ब्याह रचाएगा
जल्दी से एक लड़का देखो
बेटी की जल्दी शादी कर दो
पर साहब थोड़ा मुझको छुट्टी दे दो,
हाथ बेटी के पीले करने से पहले
घर को मरम्मत करवाना है
रंगों से इसे सजाना है
फिर धूम – धाम से बेटी के हाथ पीले करूँगा
पूरे कंपनी को बड़ा सा दावत दूंगा
पर साहब मुझको थोड़ा छुट्टी दे दो।
माना मैं तेरी बात
पर यार मेरे, जरा ड्यूटी कर लो
अभी जरा, यहाँ हाल बुरा है
हेड्कॉर्टर से संदेश है आया
मेरी छुट्टी भी रुकी पड़ी है
मेमसाहब साथ नहीं
इसका मेरी पत्नी को गुस्सा है
साथ आने को जिद कर बैठी है।
अब क्या कहूँ मैं उसको अपना हाल
तूने तो मुझसे कह दिया
पर कैसे कहूँ मैं अपना हाल
माना मैं तेरा साहब हूँ
पर बीबी से समझना पड़ता है
रोज उसको भी कॉल करना पड़ता है
थोड़ा उसको भी समझना पड़ता है
झूठा ही सही पर,
उसको भी दिलासा देना पड़ता है।
क्यूंकि बीबी से उलझना बेकार है
और कैसे कहूँ मैं अपना हाल
लेकिन अबकी बार मुझे भी घर जाना है।
पर साहब मेरी अर्जी सुन लो
मुझको थोड़ा छुट्टी दे दो
घर पे बहुत काम पड़ा है
पेंशन से पहले सब निपटाना है
बेटे को बाइक नया दिलाना है
पत्नी को मायके भिजवाना है
नहीं तो फिर पंगा होगा
घर में बीबी संग दंगा होगा
मेरे तरफ न कोई होगा
ये फौजी, बीबी का फिर बागी होगा
हार मान मैं कैसे बैठूँगा
अब आप ही कोई फैसला कर दो
कैसे भी कर मुझको थोड़ी छुट्टी दे दो
मुझको घर जाना है।
पर साहब ने ,अब सुनी न मेरी कोई बात
कहा मालूम था मुझको
तू न सुनेगा मेरी कोई बात
चल अब आदेश तुझको मेरा है
कंपनी में नफ़री कम है
दो दिनों का अभियान है
फिर अभियान के बाद
कंपनी में एक दिन का आराम है
मैं भी रहूँगा साथ तेरे
चल अब तो मेरा ऑर्डर मान ले
जय हिन्द कर मार्च कर ले।
पर मालूम न था मुझको
की दिल मेरा टूटेगा
सब सपना छूटेगा
साहब की बात तो मैंने मान ली
पर उसको ये न मंजूर था ,
घर जाने से पहले
टिकिट मेरा कन्फॉर्म था
घर न आने देगा अब वक्त मुझको
मैं तो आऊँगा पर वो न प्यार मिलेगा मुझको
देखूँगा मैं सबको,
पर कोई न देखेगा मुझको
अब कैसे झेलूँ मैं इस दर्द को
मैं आ कर भी आ ना पाया
सपनों में भी अपनों के
जा न पाया
अपनी बात किसी से भी
कह न पाया।
मैं क्या जानूँ कि ऐसा भी दर्द मिलेगा मुझको
अब कैसे खुद को समझाऊँगा
अपनी बात मैं कैसे,
अपनों को अब बताऊँगा
काश अगर साहब ने मुझको छुट्टी दे दी होती
तिरंगा में लिपट, मैं न आता
ताबूत कोई ,मेरे घर ना आता
अब किसको मैं अब अपनी व्यथा सुनाऊँ
गर्व है मुझको अपनी शहादत का
मैं न आया पर,
तिरंगे में लिपटा मेरा ताबूत है आया
पर यारों मैं घर न आया
अब बेटी पूछे कौन करेगा मेरा कन्यादान
ये सुन कर मुझको रोना है आया
अब शहीद की क्या व्यथा सुनाऊँ
मैं न आया पर,
तिरंगे में लिपटा मेरा ताबूत है आया।