माँ होना भी आसान नहीं
माँ होना भी आसान नहीं
सम्हल -सम्हल कर कदमों को रखती है वो
दर्द को सह कर भी खुश रहती है वो
न भूख की परवाह, न स्वाद का लहजा
कुछ भी खा लेती है वो
जब मालूम पड़ता है उसको
गर्भ से है वो।
दर्द न जाने कितनी सहती है
फिर भी मंद -मंद मुसकुरातीं है वो
करवटों को डर - डर कर बदलती है वो
मीठा खट्टा का बहाना तो लोगों का
पर परवाह है उसको उस मासूम का
पेट के अंदर है जो उसके
बस परवाह है उसको उस जान की
गर्भ में है जो उसके।
दर्द की पीड़ा सह कर
लोक-लाज सब को छोड़ किनारे
जननी बन जाती है वो।
माना की इस दुनिया में सब कुछ आसान है
पर माँ बनना भी इतना आसान नहीं
अरे मर्दों की दुनिया की इस दुनिया में
माना की दुख दर्द आसान है
पर भाइयों ,
माँ होना भी आसान नहीं।
