जननी महान
जननी महान
ओ जननी.................
ओ जननी ,,,,,,,,,,,,,
तुम हो जन - जन का सार,
तुम हो जन - जन का आधार,
ओ जननी ,
तुम हो जन - जन का मान ।
पर क्या समझे ये तुझको ,
है जो ये निर्मोही संसार ।
तुम अबला ही सही, दुबला ही सही,
कोमल ही सही , भावुक ही सही ,
फिर भी, तुम हो जीवन की सार ।
हाँ जीवन की सार ।
जीवन का आधार
मान में भी ,अपमान में भी
जीवन में भी, मरण में भी
सुख में भी, दुःख में भी
संयोग में भी , वियोग में भी
हास में भी, परिहास में भी
तुझको जीना है स्वीकार
ओ जननी
तुझको जीना है स्वीकार ।
पर ,क्यों न समझें तुझको,
ये निर्मोही संसार
मैं अनजान ,
मैं नादान
क्या करूँ तेरा बखान
तुम हो जो ममता का भंडार।
ओ जननी,
तुम हो जीवन का अभिमान
अस्तित्व है जीवन का तुझसे
सृष्टि भी थमती है तुझसे
तेरे आंचल की छाया में ,
पले है जग संसार ।
रूप अलग है ,रंग अलग है
गुणों में तू सबसे महान है ।
तभी तो ओ जननी तुम हो धनवान
बाकी सब कंगाल, तुम ही हो धनवान ,
तुम हो जन - जन का सार,
तुम हो जन - जन का आधार,
ओ जननी,
तुम हो सबसे महान।
