।।उम्मीद।।
।।उम्मीद।।
पूछा उस बूढ़ी माँ को मैंने,
ये सघन परिश्रम जो तुम करती,
क्या आस तुम्हें अब जीवन से,
जो त्रण त्रण कर पग तुम धरती,
किन स्वप्नों की अभिव्यक्ति बाकी,
है कौन आस जो अब तक रिसती,
बोली वो बूढ़ी माँ , सुन बेटा,
सांस ये जब तक बाकी है,
सब कर्म रहूँ में यूँही करती,
ये उम्मीद चीज़ ही ऐसी हैं,
जो मरते दम तक ना मरती।
वो रुग्णालय में जूझ रहा था,
बस जीवन और मरण के बीच,
औषधि ,दवा सब बेमतलब थी,
यमराज रहे थे मुष्टिक भींच,
फिर भी थी स्मित एक चेहरे पर,
ज्यों कोई थी परवाह नहीं,
दुख लाख थपेड़े मारे था,
पर निकली थी बस एक आह नहीं।
पूछा मैंने कैसे सह पाते,
है कौन विधा जो सब दुख हरती,
वो बोले उम्मीद चीज ही ऐसी है,
जो मरते दम तक ना मरती।।
जीर्ण शीर्ण से वस्त्र पहन,
तिलक शोभित उन्नत सा भाल,
रत परम पिता की सेवा में वो,
किंचित न हाल पर अपने मलाल,
हे विप्र भला कैसे रखते तुम,
खुद को सयंत हो कैसा भी काल,
वो बोले सब कुछ ही उसका,
ये नभ, मंडल और सब धरती,
सब आस निराश निहित उस में,
तो ये उम्मीद कभी अब ना मरती।
मानव जीवन कुछ और नहीं,
बस उम्मीद की एक कहानी है,
उम्मीद जहां तक है जीवित,
हरपल जीवन में रवानी हैं,
नित रोज़ ही सूरज आएगा,
इस उम्मीद में घूम रही धरती,
यारो उम्मीद चीज ही ऐसी है,
जो मरते दम तक ना मरती।।