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Dinesh paliwal

Abstract Horror

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Dinesh paliwal

Abstract Horror

गिद्ध

गिद्ध

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गिद्ध नहीं मानता अन्तर कोई 

मानव पशु या हो खग

बस निहारता नाचता नोंचता

न ग्लानी न निर्लिप्तता 

बस रक्त स्वेद मज्जा 

क्रूर पंजों तले दबोचता

लाशों की निर्मम आहों का

बिन भेद भाव करता निबटारा

परिभाषा से कुछ ना निषिद्ध 

गिद्ध।।


गिद्ध एक पक्षी मात्र

या एक मानसिकता

वासना की बेडौल चोंच

कुटिलता के पैने पंजे

बस दिखावा सादगी का

और ख्वाब में बस पाशविकता

कितनों के अरमानों की लाशें

पाटकर भी है बाकी क्षुधा

मारकर निज आत्मा को

जो नोचकर हो कार्य सिद्ध 

है नहीं अतिशयोक्ति ये

है पशु नहीं अपितु व्यवहार गिद्ध।।


हाँ देखे हैं गिद्ध हर समाज में

बीते कल में और आज में

करते इंतज़ार अपने शिकार

दिखलाते छलकते मन विकार

दृष्टि बस एकटक पराभव

कचोटती भेदती चर्म सब

रक्त लोलुप विकृत से मन

क्या धर्म और अधर्म तब


लाश कितनों की गुजर कर

हुंकारते क्यों हो प्रसिद्ध 

षडयंत्र से जो पाते सफलता 

कलयुग के कैसे कैसे विद्ध

है मनुज की नीचता का 

पर्याय बस ये शब्द गिद्ध

पर्याय बस ये शब्द गिद्ध।।


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