गणतंत्र
गणतंत्र
देश ने फिर से आवाज दी है,
क्या झिझक अब उठ चलो,
रोशन रहे अपना चमन ये,
तो मशाल बन तुम अब जलो।।
हैं सारी निगाहें विश्व की बस,
निज पुरुषार्थ पर अपने इसी,
आज ध्वज हो अपना शिखर,
है वक़्त अपना अब ना टलो।।
तुम ही सैनिक तुम ही हो राजा,
तुम श्रमिक और तुम ही धनी,
अन्नदाता कृषक भी हो तुम,
हैं समवेत ये सब आती ध्वनि।।
ये सम्पदा जो संस्कार की सब,
संचित करुण परिधान में इस,
नियति करती हो मस्तक तिलक,
तब हाथ अब तुम क्यों मलो।।
ये आह्वान है जो मन स्वतंत्र है,
नित बढ़ता निखरता गणतंत्र है,
दमक हर चेहरे पे ज्यों कुंदन,
बस अब देशभक्ति ही मंत्र है।।
ये तिरंगा लहरा के है कहता,
मां भारती के तुम अंश फलो,
हर रंग समेटे संदेश कोई एक,
रंग एक आज तुम भी ढलो।।
आज भारत जिस द्रुत गति से विश्व पटल पर अग्रसर है वो हम भारतवासियों के लिए गर्व का विषय है। हर भारतवासी को इस अश्वमेध में अपने श्रम और क्ष्मता की सामग्री समर्पित कर देश को विश्व शिखर पर पहुंचाने में अपना योगदान देना चाहिए यही इस कविता के माध्यम से निवेदित किया है।