क्योंकि बेटी चिड़िया नहीं होती
क्योंकि बेटी चिड़िया नहीं होती
मत सिखाना अपनी बेटियों को
किसी पर भी विश्वास करना।
सिखाना उसे रिश्तों की अहमियत
पिता, भाई, पति, पुत्र की स्नेह और इज़्ज़त
पर ये सिखाना मत भूलना कि
पुरुष - पुरुष होता है
जब तक बेटियाँ न हो समझदार
रखना अपनी सतर्क नजरें चारों ओर
जाने किस वेश में छुपा हो
कलियों को समय से पहले ही
मसल देने वाले विक्षिप्त।
बाँधना उसके पैरों में पायल संस्कारों की
छनकने वाली
पर वो बेड़ियाँ मत पहनाना
कि उसे अपना जन्म बोझ लगने लगा
कहीं किसी मेले में, बदतमीजों द्वारा
उसके कपड़े खिंच दिए जाने पर
चुपचाप, सिर झुकाए पढ़ने के लिए
पैदल, रिक्शे या साइकिल पर जाते हुए
लफंगों द्वारा पत्र, या फूल बरसाये जाने पर
कहीं से कोनटैक्ट नंबर पा
दिन - रात कुछ लोगों के फोन पर
उधम मचाने में
बेटियों का कोई दोष नहीं होता
इसलिए बेटियों को चिड़िया समझ
अब उसे पिंजरे में कैद करने की
गलती मत दोहराना ।
विश्वास करना अपनी बेटियों पे अब
फैलाने देना पर उसे
उड़ने देना उन्मुक्त नीले गगन में
उसे बिना किसी भय के
इस विश्वास के साथ की जहाँ
उसके पंख थक जाएंगे
माँ तुम सम्भाल लोगी
सिखाना उसे अब अपनी अहमियत
अपनी सुरक्षा करना
कुछ गलत होने पर आवाज उठाना
समझाना उसे स्त्री के रूप में
सीता की मर्यादा
पर दुर्गा, और काली
का अस्तित्व भी उसमें समाहित है
ये भी उसे स्मरण जरूर कराना
हर बात का समाधान
समाज की रूढ़िवादी सोच के आगे
चुप रह जाना नहीं होता
ये खुद भी समझना और
अपनी बेटियों को भी समझाना
क्योंकि अगर कुछ गहरे घावों को
समय के भरोसे अनदेखा कर दिए जाए
और वो नासूर बन जाए तो
उंगलियों गुनाहगारों की जगह
आप पर ही उठ जाती हैं कि
समय रहते क्यों नहीं बोला
ये जानते हुए भी कि
ताले आपके द्वारा ही जड़े
गए हैं स्त्रियों के मुंह पर
जिसकी चाभी हथियाना
अपना सब कुछ दांव पे
लगा देने के समान है ।