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सुरभि शर्मा

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सुरभि शर्मा

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गुनगुनाती गजल

गुनगुनाती गजल

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हाँ, मैं इक सवाल हूँ, तो क्या फिर तुम मेरा जवाब बनोगे

मैं लिखूँगी फलसफे जिंदगी के, क्या तुम मेरी किताब बनोगे।


आँखों में जो सजा के रखूँ तुम्हें काजल की तरह

तो क्या फिर तुम मेरे हर अश्क का हिसाब बनोगे।


बुझने लगे जब सारी हसरतें परेशानियों के अंधेरे तले 

तो क्या फिर तुम मेरी उम्मीदों का चमकता आफताब बनोगे।


जब रिस रहे हो जख्म कुछ यादों के कड़कती धूप में 

तो क्या फिर तुम बारिश से छनकता मेरा रूबाब बनोगे।


जब हर लम्हे हो रहा हो इम्तिहान सब्र का मेरे 

तो क्या फिर तुम मेरे लिए दुआओं का माहताब बनोगे।


जो दहक जाऊँ कभी अंगारों की तरह हो गम ज़दा

तो कहो क्या फिर तुम मेरा इन्कलाब बनोगे।


गुमशुदा जो हो जाऊँ कभी हो हकीकत से रूबरू 

तो क्या तुम दिल में छुपा मेरा हर मुक्कमल ख्वाब बनोगे।


"जिंदगी" जो न उतर पायी तू खरी रदीफ़, काफिया पैमानों पे 

तो भी क्या तुम मेरी गुनगुनाती गजल लाजवाब बनोगे।



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