STORYMIRROR

सुरभि शर्मा

Others

4  

सुरभि शर्मा

Others

पीहर

पीहर

1 min
594

जहाँ सुबह उठने के लिए

किसी अलार्म की जरूरत नहीं

हँसते गुनगुनाते कट जाता है दिन पूरा

किसी पल थकने की आदत नहीं


जिन्दगी का हर लम्हा फिर से 

गुलजार लगता है 

खोया जो ख्वाब था बचपन का 

फिर से आँखों में जगता है 


रूखे हो चुके स्वभाव में 

खुद ब खुद वापस 

खो चुकी मिठास आ जाती है 

माना हो चुकी परायी यहाँ 

पर गली मोहल्ले, नाते रिश्ते 

घर की दीवारों में 

अपनेपन की छाँव दिखती है 


जो बातें दिल में रख चुकी 

अब किसी से बोलना नहीं चाहती 

खुशी, गम के कुछ अनजाने साथी के 

जो राज खोलना नहीं चाहती 


उन गिरहों को भी कोई न कोई 

खोलने चल देता है 

और फिर मन बेकाबू होकर 

सबसे सब कुछ बोलने चल देता है 


जाने कहाँ खो गयी मेरी वो प्यारी चिड़ियाँ, और गिलहरी 

जो छत पर मेरे हाथ डाले हुए दानों को चुगने आया करती थी 

बेगानी होकर भी मुझे इतनी अपनी लगती थी वे की 

मैं दिल की हर बात उनसे कह जाया करती थी 


बुआ, दीदी, बेटी इन सब पुकारे जाने वाले पहचानो में 

हर पल, हर क्षण, हर लम्हा जाने कैसे बीत जाता है 

पता भी नहीं चलता और सिर पर घूँघट डाले, 

आँचल में चावलों का खोएँचा लिए, नम आँखों के साथ 

मायके का आशीर्वाद और प्यार हमेशा सिर पर बनाए रखना की दुआ करते 

एक बेटी पर दो कुल की लक्ष्मी 

चल देती है अपने कर्तव्य का निर्वाह करने 

अपने घरौंदे की और वापस!!!! 



Rate this content
Log in