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सुरभि शर्मा

Romance Fantasy

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सुरभि शर्मा

Romance Fantasy

ग्रहण

ग्रहण

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यूँ छुप - छुप कर

चाँद को जो निहारते हो

क्या उसे अपनी आँखों का 

ग्रहण लगाने का इरादा है!


यूँ फूँक मार

हवा के झोंकों से, जो

बिखरी लटो को संवारते हो

क्या उनके गेसुओं में

मोहब्बत के गज़रे

सजाने का वादा है!


यूँ उड़ा रहे हो गुलाल

उन्हें देख, जो हर्फों के

क्या रंगरेज बन अबीरी

करना है, उनका लिबास

जो सादा है!


गिन रहे हो क्या अमावस को 

उँगलियों पे 

चाँद के पूरा निकलने तक 

पाने के लिए उस मिलन को 

जो अभी आधा है।



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