सोचो जब ये लडकियाँ
सोचो जब ये लडकियाँ
सोचो जरा!
वो क्या दृश्य होता होगा
जहाँ लड़कियाँ चीखती
चिल्लाती होंगी
पर हाथ पैर
लाखों बार पटक कर भी
खुद की अस्मत न बचा पाती होंगी
लड़कियों के कपड़े और चरित्र पर
भाषण देने वाले
जाने कैसे बेरहमी से
उन मासूमों के
कपड़े फाड़ते होंगे
जिस आँचल के नीचे दूध पिया
जिस आँचल के खून से जन्म लिया
कैसे वहां अपना वहशीपन
उतारते होंगे!
जाने कैसी इन्हें भूख लगी
जो कभी संतुष्ट न हो पाती हैं
वो चाहे हो नन्ही कलियाँ
या हो चाहे फल पके
इन अधर्मी के पाँव नीचे
कुचली जाती हैं,
सुनो ए नराधमों
स्त्री के सब्र की
परीक्षा मत लेना
कहीं ऐसा न हो
फिर तबाही आ जाए
कन्या भ्रूण हत्या निषेध
की जगह
कुमार भ्रूण हत्या निषेध
के पोस्टर हर जगह
चिपक जाएं।