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उषा पाण्डेय

Romance

3  

उषा पाण्डेय

Romance

कत्थई प्रेम

कत्थई प्रेम

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तुफान सा मच उठता है,

जब तुम गुजरते हो यादों से मेरे,

चटक जाती है खिड़कियां दिल की,

तब बंद पलकों में उभरते अक्स को मैं सहेज  

महफूज रखती हूँ।


ठीक वैसे ही 

जैसे सिरहानें पड़े किताब के पन्नों के

तहों में रखा कोई सुर्ख लाल गुलाब

खुश्बू को महसूस करने का प्रयत्न,

और वो नाजुक छुअन का अहसास

वो तुम्हारा मूक प्रश्न चाहतों से भरा

और नजर झुकाती मेरी स्वीकृति।


कितना अद्भुत और मीठा था न वो सब

जानते हो ! वो पल आज भी 

बिल्कुुल वैसी ही रखी हूँ

सहेजकर इस सुर्ख से गुलाब में।


हाँ थोड़े सूख कर और कत्थई

हो गयी है इसकी पंखुड़ियां

हू ब हू वैसे ही जैसे यादों में 

हमेशा के लिये गहरे हो के

साँसों में आत्मसात हो गये हो,

मेरे अंतस में समाहित हो 

बन गये मेरे कत्थई प्रेम।


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