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इन सभी को ओढ़े करती निर्वहन मन से या बेमन, तो कभी कभी लावा जमाकर संभालती इन सभी को ओढ़े करती निर्वहन मन से या बेमन, तो कभी कभी लावा जमाकर संभालती
बिल्कुुल वैसी ही रखी हूँ सहेजकर इस सुर्ख से गुलाब में। बिल्कुुल वैसी ही रखी हूँ सहेजकर इस सुर्ख से गुलाब में।