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Swati ankan

Romance

3  

Swati ankan

Romance

दो अनजाने..

दो अनजाने..

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मुद्दतों पहले मिले थे

रीति की लगाई नींव थे...


नावाकिफ़ सा थे..

वाकिफ़ होते गए थे...


माहौल एकसार पूरा पूरा न था...

उसे अपनाए, जकड़े रखा था...


गुंजाइश की कोई गूँज न थी...

नियति की ऐसी पूँज थी...


कुछ बेमन भी था...

पर मन अपना न रहा था...


दो गज ही अपने ताल्लुक के थे...

खुले आस्मां की खुल्लास न थे....


भाव बड़े ऊँचे थे... 

पर बढाए मैंने न थे....


रोज एक नया दिन था...

शाम ढले तो दिन पुराना था....

 



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