Anita Sharma

Romance

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Anita Sharma

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बसंती विरह

बसंती विरह

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कुंद...सेमल...हरसिंगार...पलाश

इन लताकुंजों को है तुम्हारी तलाश,

अब जाने कितने और बसंत

कहां निकल जाएंगे विरह में मेरे

जब कर पाऊँगी पुष्पों से श्रृंगार

और बन जाउंगी स्वर्ग की अप्सरा

बरसों से हर बसंत संग गवाह बनती हूँ…!

चहकती फुदकती चिड़ियों की,

फूलों संग लीन तितलियों की,

नन्ही कोपलों पर गूंजते भ्रमरों की,

हर तरफ लहलहाती सरसों की,

मानो प्रकृति ओढे हो धानी चुनरी;

उस आस और विश्वास की चूनर ओढ़

बैठ जाती हूँ बसंती विरह सहेजे!


किन्तु धरा का सौंदर्य प्रभासी,

शनैः शनैः हो जाता है आभासी,

जैसे ये गुलमोहर भर भर आते हैं,

फिर उदास हो हो झर जाते हैं;

पतझड़ की फैलती उदासी,

मेरी अभिलाषा कभी ना थी,

इसलिए बस तुम्हारे इंतज़ार में,

बसंत के साथ मैं भी लौट आती हूँ,

इस समशीतोष्ण प्रवाह संग,

बहती है मेरी भी श्वासें,

बुदबुदाती हैं बसंती अधूरा प्रेम गीत।


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