गुमशुदा
गुमशुदा
बहुत तेज़ भागते हैं लोग,
बाँध लेते हैं....
उम्मीदों का बिस्तरकस..
ओढकर सपनो का आसमान,
कई बार बिना सोचे समझे
प्रवेश पा लेते हैं काफिलों में;
ठहराव नज़र नहीं आता
उनके उद्देश्यों में !
बहुत जल्दी बढ़ने की
अग्नि में
घट जाते हैं अवशेष!
एक दिन अचानक
गिरा दिए जाते हैं
कहीं नज़रों से...
धीरे धीरे पाते हैं एकांत
….उनके विचार !
उनकी पहचान
खोने लग जाती है...
खुद में कहीं!
सलाहकार तानो में…
देते हैं सलाह…
वक़्त के साथ चलने की
…………………...
यथार्थ में क्यों नहीं जीते ?
ऐसा कह जाते हैं…..!
कुछ आगे बढ़ने वाले लोग;
जो भाग रहा था,
चोटिल हो गिर पड़ा है,
वो अब गुमशुदा है....
गुमनामी के बादलों का पहरा है,
वक़्त अच्छा-बुरा कब ठहरा है!
काफिले काफी आगे हैं,
गुमशुदा देख रहा,
कभी दूर जाते हुए उम्मीदों को
तो कभी छिले हुए घुटनों को !