पीपल
पीपल
फिर आ गयी नयी कोपलें पीपल की फिर चहचहाने लगे पंछी उस पर।
बरसों पुराना पीपल
छोड़ देता है पुराने पत्ते
विशाल भव्य आकार हो जाता है रीता
करता है इंतजार
नए पत्ते पंछियों और पथिकों का
इस अटूट विश्वास के साथ
एक दिन ये फिर लौटेंगे।
बरसों पहले बने बसेरे
उस बस्ती को करते गुलज़ार
अपनी सामर्थ्य भर पैसा जुटाते
करते सुविधाओं का विस्तार
गूंजते कहकहे ओर किलकारियां
देने नन्हे पंछियों को विस्तृत आकाश।
पीपल के नीचे बैठ कर
लिए गए मशविरे
देखते पीपल की कोंपलें
दी गयी सलाहें,
वापस लौटेंगे ये पंछी
आज इन्हें जाने दो।&
nbsp;
पीपल की एक एक शाख सा
हर घर रहा इसी आस पर
तब से अब तक न जाने कितनी बार
पीपल पर आ गयीं नई कोपलें
कितने ही पंछियों के बने बसेरे
पीपल फैलाता रहा अपनी शाखें
देने पथिकों को छाँव।
पीपल के नीचे बैठ कर
आज भी होते है मशविरे
समेटने अपने विस्तार को
इन बूढ़े पीपलों को
हो गया है ये विश्वास
कि इनकी शाख पर
कोंपलें अब नहीं लौटेंगी
पंछी दो घड़ी सुस्ता कर लौट जायेंगे
अपने नए बसेरों में।
पीपल के नीचे
अब भी होती हैं बैठकें
चहकते पंछियों को देखते
मन का सूनापन मिटाने को।