भीड़ भरती थी भारी, कभी शाम को तो कभी भरी दुपहरिया में, कुछ चेहरे अनुभावों वाले चांदनी भीड़ भरती थी भारी, कभी शाम को तो कभी भरी दुपहरिया में, कुछ चेहरे अनुभावों ...
पंछियो का है इन पर बसेरा पंछियो का है इन पर बसेरा
यह तो पंछियों के उड़ने के लिए है मैं तो इंसान हूं कुछ नया बना लूं क्या यह तो पंछियों के उड़ने के लिए है मैं तो इंसान हूं कुछ नया बना लूं क्या
अपनी उम्मीदों को कभी दबाना नहीं अपने सपनों को कभी चूर होने देना नहीं अपनी उम्मीदों को कभी दबाना नहीं अपने सपनों को कभी चूर होने देना नहीं
पंछियों की तरह आज आज़ाद तो गुम रहा हूं मैं बस वृक्षों की डालियों पर झूल जाऊं तो अच्छा पंछियों की तरह आज आज़ाद तो गुम रहा हूं मैं बस वृक्षों की डालियों पर झूल जाऊं ...
पीपल की एक एक शाख सा हर घर रहा इसी आस पर पीपल की एक एक शाख सा हर घर रहा इसी आस पर