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Shraddha Gaur

Others

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Shraddha Gaur

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बरगद की छांव

बरगद की छांव

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भीड़ भरती थी भारी,

कभी शाम को तो कभी भरी दुपहरिया में,

कुछ चेहरे अनुभावों वाले चांदनी की सफेदी से बालों को रंगा कर ,

आंखो में उम्मीदों के पंखों को फैलाकर,

कहानियां अपनी ही सुनाते जाते थे उस बरगद की ‌‌छांव तले।

कभी दौड़ते बालक आकर उन्हें प्रणाम थे करते ,

तो कभी घूंघट के भीतर से मालकिन घर की चाय पेश थी किया करती ,

माहौल हंसी से गूंज पड़ता जो पुराने दिनों की बात चल जाती थी,

कुछ दोस्त, कुछ परिवार बन गए थे,

बरगद की छाया में कितने पंछियों के घर बार बन गए थे।

तना मज़बूत बना कर रखा था जो आशियाना टीका है खुशहाली वाला।


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