फिर भी मैं पराई हूं
फिर भी मैं पराई हूं
आंगन आपके ही जन्मी,
मैंने भी दादी संग
तुलसी को सींचा था,
जब जब बीमार पड़े थे बाबा,
मैंने ही उनका सर मींजा था।
मां संग बाज़ार गई,
सीखी हर इक बात नई।
पापा से सीखा चलना और
बदमाशियों की किताब लिखी।
मेरे बिन ना लगता था जी
आपका और आज
काले धागे से बधने के बाद
मैं पराई हो गई?
मैं लक्ष्मी थी आपके घर की
और सिर्फ आज किसी फलाने की
लुगाई हो गई?
हक नहीं मिला मुझे आपका कहलाने का,
बेटा नहीं थी मैं तो मैं वंश कैसे बढ़ाती?
मेरे बच्चे क्या कुछ लगते भी हैं आपके?
कोख से दिया था अपनी ही जन्म और
आज मेहमान सा पेश आती हो,
मां तुम समाज के नक्शे कदम पर तो चलती हो,
अनजाने में मेरा दिल बहुत दुखाती हो।