STORYMIRROR

Shraddha Gaur

Tragedy

2  

Shraddha Gaur

Tragedy

फिर भी मैं पराई हूं

फिर भी मैं पराई हूं

1 min
251

आंगन आपके ही जन्मी,  

मैंने भी दादी संग

तुलसी को सींचा था,

जब जब बीमार पड़े थे बाबा, 

मैंने ही उनका सर मींजा था।

मां संग बाज़ार गई, 

सीखी हर इक बात नई।

पापा से सीखा चलना और

बदमाशियों की किताब लिखी।

मेरे बिन ना लगता था जी

आपका और आज

काले धागे से बधने के बाद

मैं पराई हो गई?

मैं लक्ष्मी थी आपके घर की

और सिर्फ आज किसी फलाने की

लुगाई हो गई?

हक नहीं मिला मुझे आपका कहलाने का,

बेटा नहीं थी मैं तो मैं वंश कैसे बढ़ाती?

मेरे बच्चे क्या कुछ लगते भी हैं आपके?

कोख से दिया था अपनी ही जन्म और

आज मेहमान सा पेश आती हो,

मां तुम समाज के नक्शे कदम पर तो चलती हो,

अनजाने में मेरा दिल बहुत दुखाती हो।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy