क्या इतनी बुरी हूँ मैं
क्या इतनी बुरी हूँ मैं
की इस राह में अकेली खड़ी हूँ मैं,
क्यों कोई हमदर्द नहीं है हमारा
क्यों सब बस इस्तेमाल करना कहते है हमारा ।। 1 ।।
क्या इतनी बुरी हूँ मैं,
की कुछ इस कदर जी रही हूँ मैं,
जीने का मतलब सीखा के क्यों छोड़ जाते है हमें,
इन राहों में अकेले ।। 2।।
क्या हक़ है उनको हमारे दिल से खेलने का,
ए खुदा दे सकती इन सबको झेलने की,
क्यों सब दोस्ती को बदनाम करना कहते हैं,
क्यों सब हमें बस इस्तेमाल करना चाहते है।। 3।।
क्या इतनी बुरी हूँ मैं,
भेज किसी अपने को मेरे लिए,
क्या इतनी बुरी हूँ मैं,
की इस राह में अकेले खड़ी हूँ मैं।। 4।।
प्यार कर के पछताने का कोई हक़ नहीं मुझे,
हमें गुरूर है अपने प्यार पे,
वो हमेशा साथ है हमारे,
इतनी भी तो बुरी नहीं हूँ मैं।। 5।।
