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Akanksha Kumari

Abstract Tragedy

4  

Akanksha Kumari

Abstract Tragedy

ना लैला हुई ना हीर

ना लैला हुई ना हीर

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324


इंसान बदलते हैं,तकदीरें नहीं,

मंजर बदलते हैं,जंजीरें नहीं,

खवाब बदलते हैं,आँखें नहीं,

जिस्म बदलते हैं,रूहें नहीं ।।१।।


चेहरें बदलते हैं,फितरतें नहीं,

जमानें बदलते हैं,अफ़साने नहीं,

मैखाने बदलते हैं,परवाने नहीं,

राहें बदलते हैं,निस|नें नहीं ।।२।।


लोगों को क्या खूब बदलते देखा है हमने,

पीठ पीछे वार करते देखा है हमने,

गलती चाहे जिसकी भी हो,

खुद में निशाना उठते देखा है हमने,

तकदीर का रुख मोड़ कर

आगे बढ़ते रहने का

हौसला देखा है हमने ।।३।।


अरे आप क्या वादा करेंगे हमसे,

वादें तो टूटने के लिए हीं होते हैं,

हम तो अपनी मौत की ख्वाइश लेकर,

हर रात सोते हैं ।।४।।।


एक वक़्त आएगा, जब आप भी

हमें ही गुनहगार ठहरा के चले जायँगे,

हमारा क्या है जनाब, हम तो यूँ ही राहों में

आँखें बिछाये बैठे रह जायँगे,

तारीखें लिखी जायँगी

एक दिन हमारे नाम की,


ना लैला थी वो ना थी हीर,

बस एक उम्मीद की लौह की

तलाश में भटकती हुई सी वो,

ना लैला हुई ना हीर ।।५।।।  


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