दीप
दीप
दीप ने बस जलना जाना
आंधी-तूफान, जंगल बियाबान
करते रहें निष्ठुर प्रलय का ऐलान
अंधेरी रातों का ताना बाना
कर दे चाहे उसे निस्पृह निष्प्राण
घबराए न वह छोटी सी जान
दीप ने बस जलना जाना
जलना उसकी फ़ितरत,रोशनी से काम
सपना ज्वलंत,उत्तम ,उज्वल भविष्य का
ख़ुद से वादा निभाने का,कुछ कर दिखाने का
कर दिया सार्थक उसने अपना नाम
सूरज से पंगा क्या मगर उसे भी है गुमान
जलने में ही उसकी गरिमा उसकी शान
जलना उसकी फ़ितरत, रोशनी से काम
नापनी है अभी मीलों की दूरी
है बाक़ी जब तक स्पंदन , जब तक सांस
गरिमामय बनी रहे यह ज़िंदगी,हो इसमें वास
श्रद्धा, संकल्प और माधुर्य का
छोटा सा दिया और बाती कर देते अनायास
निःशब्द-कौन करे शब्द ढूंढने का प्यास
नापनी है अभी मीलों की दूरी!
दीप जले जलता ही रहे
प्रेरित हो, प्रेरित करता ही रहे
अंधेरे उजालों में फ़र्क न रहे
मुकाम ऐसा,जो सबसे कहे
लीन प्रकृति में हम सभी
शुक्रगुज़ार,संतुष्ट हम सदा रहें।
