दिल के अंतस से उपजी एक कविता..... दिल के अंतस से उपजी एक कविता.....
मैं नदी हूँ तुम्हारी माँ जैसी हूँ सब कुछ सह चुप रहती हूँ। मैं नदी हूँ तुम्हारी माँ जैसी हूँ सब कुछ सह चुप रहती हूँ।
उठ जा तू भी अपने सेज से लेकर फूलों का हार अभी। उठ जा तू भी अपने सेज से लेकर फूलों का हार अभी।
मैं सदा के लिए निर्मल हो गया हूँ, कि मैं अब कभी भी मलिन न हो पाऊंगा। मैं सदा के लिए निर्मल हो गया हूँ, कि मैं अब कभी भी मलिन न हो पाऊंगा।
चिंतन नहीं, मंथन नहीं, माकूल जवाब कोई देता नहीं। चिंतन नहीं, मंथन नहीं, माकूल जवाब कोई देता नहीं।
सुबह से लेकर शाम तक मैं सब के दिल को बहलाती हूँ आई जब अपने दिल की बारी तो अपने मन को में झुठलाती ... सुबह से लेकर शाम तक मैं सब के दिल को बहलाती हूँ आई जब अपने दिल की बारी तो अपन...