दीवार
दीवार
मेरे मन ने पूछा-क्यों वह क्षुब्ध,क्यों नाराज़
क्या कह दिया तूने, क्या कर दिया तूने-
मेरे मन ने पूछा - क्या तू नहीं क्षुब्ध , नाराज़
क्या कह दिया उसने,क्या कर दिया उसने-
छोटी सी बात ,न जाने कब कर देती आगाज़
मनमुटाव का-रहे न उसके बाद कुछ बस में
शिकवे शिकायतों की लम्बी सूची हो जाती तैयार
मन ही मन दोस्त करने लगते एक दूजे पर वार
मन ही मन , तर्क पर तर्क हो जाते हैं ऐसे सवार
हर छोटे से छोटा मुद्दा बन जाए चाकू की धार
परत पर परत जमती ही जाती- विश्वास जाए हार
हज़ारो परतों के नीचे दबी वह शुरुआत अब याद नहीं
कोशिश अपने मन में झांकने की भी अब बेकार
दीवार तो खड़ी हो गई-कौन जीता,कौन गया हार
जानना मुमकिन नहीं -पर सच यही- है यह दीवार
दुश्मनी , नफ़रत , कल्मष का खाली न गया वार
पीढ़ी - दर पीढ़ी करेगी और भी पक्की यह दीवार
कहां,कब हुई शुरुआत-कौन करेगा इनका उद्धार
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