दीवारो दर
दीवारो दर
कोशिश न करे जो दीवारो-दर को पहचानने की
रखता है ख़ुद को धोखे में जीवन पर्यन्त
छलता है अपने को, अपनों को ,गैरों को-
हदें न जानें जो,जाने न जो अहमियत जानने की
कैसे निभा पाएगा उन नाज़ुक रिश्तों को
जो टिकी हुई हैं छोटी छोटी बातों पर
तकल्लुफ़ कुछ निभाने,उनकी ख़ासियत मानने की
पीछे हटे अगर इनसे, रख पाए न गर इनका मान
सच्ची दोस्ती का धरा का धरा रह जाएगा अरमान!