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Prem Bajaj

Inspirational

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Prem Bajaj

Inspirational

काश‌ मैं ये समझ पाती

काश‌ मैं ये समझ पाती

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मैं ऐसी क्यूं हूं, क्यूं हर बात पर मुस्कुरा कर रह जाती हूं,

क्यूं हर किसी की बात का जवाब नहीं दे पाती,

क्यूं चुपचाप सर झुका कर हर एक की बात पर सहमति जताती हूं,

क्यूं मैं तुम्हारे कदमों के निशान पर कदम रखती हूं,


क्यूं मैं भी पांचाली की तरह चयनहीन‌ हूं, क्यूं मैं सीता की तरह मौन हूं,

क्यूं गार्गी की तरह याग्वल्क्य की सर टुकड़े करने की धमकी से डरकर चुप हो जाती हूं,

क्यूं मीरा की तरह विष पीने को भी तत्पर रहती हूं,

क्यूं मैं माधवी की तरह न्याय, धर्म और संस्कृति के मकड़जाल में फंस कर रह जाती हूं,


क्यूं नहीं मैं अपनी मंजिल तय कर पाती हूं,

क्यूं नहीं मैं अपना रास्ता स्वयं चुन पाती हूं,

क्यूं नहीं मैं बेख़ौफ़ होकर हर किसी की बात का जवाब दे पाती हूं,

क्योंकि मैं स्त्री हूं,

इसलिए क्या मैं सहने के लिए ही पैदा हुईं हूं, 


क्या कभी किसी ने जानने की कोशिश की?

क्या कभी किसी ने मुझसे पूछा?

क्या कभी किसी ने मेरे दिल‌ का हाल जानना ज़रूरी समझा?

नहीं न, 


क्या बताऊं तुम्हें किस तरह बचपन से हर बात पर चुप कराया गया मुझे,

तुमसे कुछ नहीं होगा कह कर दबाया गया मुझे,

तुम्हारी इतनी औकात नहीं आज ये भी सुनाया गया मुझे,

तुम अबला हो, मर्द की बराबरी की सोचना भी मत क्यूं ये अहसास दिलाया गया मुझे,


हां मैं एक अबला हूं, मैं कितना भी चाहूं तुम्हारे कदम से कदम मिला कर चलूं, 

मगर नहीं चल सकती क्योंकि मैंने कभी खुद को ही इस लायक समझा ही नहीं, 

मैं भी तो तुम जैसी ही इन्सान हूं, फिर क्यों मैं कमज़ोर हूं काश‌ मैं ये समझ पाती।



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