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Prem Bajaj

Abstract

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Prem Bajaj

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मुस्कुराती है वो

मुस्कुराती है वो

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भाई लाता है डिग्री सब देते बधाई मुस्कुराती है वो,

उसकी डिग्री की कद्र नहीं, फिर भी भाई पर वारी जाती है वो,


पढ़ना चाहें या न चाहे कहां मर्जी उसकी चलती है,

गाय की तरह से बंधने को खूंटे पे डोली में बैठाई जाती है वो,


पति छूए ऊंचाइयों को इस के लिए कितनी कुर्बानियां दी उसने,

नहीं कभी किसी के सामने ये गुप्त राज़ बताती है वो,


मायका, ससुराल, बच्चे सब का देती साथ हर पल, हर घड़ी,

औरों के सपने हों साकार अपने सपनों की बलि चढ़ाती है वो,


'प्रेम' कितना भी खुद को कह ले वो आधुनिक रहेगी पिछड़ी ही,

दो बोल जहां प्यार के मिल जाएं, बस वहीं बिक जाती है वो।


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