मानव सिंह राणा 'सुओम'

Abstract

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मानव सिंह राणा 'सुओम'

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ब्रज की रज

ब्रज की रज

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ब्रज के रज की शक्ति, से मैय गढ़ा हुआ हूँ।

ब्रज की रज में लोट, लोट के बड़ा हुआ हूँ।


मुरारी की सुवास, इसी रज में तो पाया।

राधा जी सी आस, हमको ब्रज ने सिखाया।।


हमें तो जीवन में, कैसा तेरा सहारा।

हमें तो कान्हा का, हुआ हो यही इशारा।।


कान्हा ना भूल जाना, रज को माथे लगाना।

दर्शन देन जब आना, बचपन साथ में लाना।।


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