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मानव सिंह राणा 'सुओम'

Abstract

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मानव सिंह राणा 'सुओम'

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क्यूँ जलाते हो दीपावली का दीया

क्यूँ जलाते हो दीपावली का दीया

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जब सीखते ही नहीं तो क्यूँ जलाते हो दीपावली का दीया।


हृदय में राग द्वेष लिए,

मन का उद्वेग सम्भलता नहीं,

राम के आदर्श का दिखावा क्यूँ?

जब जीवन में सरलता नहीं।

हर पल जलाते हैं अपनों का जिया..

किस अधिकार से जलाते हो दीपावली का दीया।


हृदय की दूरियाँ बढ़ी इतनी 

अपने भ्राता नहीं अपने रहे,

सगे थे जो कल तक वो,

विद्रोह और दीवारों में बंटते रहे।

कैसे सम्मान करोगे भाई के प्रति,

जब भरत सा हृदय ही ना किया,

तो क्यूँ जलाते हो दीपावली का दीया ...


कलुषित मन लिए तुम चलते हो

माँ पिता के तुम कहाँ बन सके ?

वृद्धाश्रम कितने बढ़ गए,

दशरथ के राम तुम कहाँ बन सके?

कोने में कितनी सिसकियाँ ली माँ बाप ने

क्यूँ जलाते हो दशरथ का हिया ?

क्यूँ जलाते हो दीपावली का दीया।


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