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मानव सिंह राणा 'सुओम'

Abstract

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मानव सिंह राणा 'सुओम'

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हमारी दिल्ली में

हमारी दिल्ली में

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अच्छे नहीं हालात हमारी दिल्ली में

नफ़रत की बरसात हमारी दिल्ली में


अश्रु बना सैलाब कभी का आया है

अब दर्दों का साथ हमारी दिल्ली में


कल तक जो अपने दिखते थे गली गली

उड़ने लगे नकाब हमारी दिल्ली में


जिनको अपना जान आसरा देते थे

निकले वही खराब हमारी दिल्ली में


कितने भूखे पेट सो रहे हैं बच्चे

होता नहीं मलाल हमारी दिल्ली में।


पीर भी पूछे रास्ता बाहर जाने का 

सोचो कैसा हाल हमारी दिल्ली में।


बजट कुतरते चूहे हमने देखे हैं

काली सारी दाल हमारी दिल्ली में।


हर राह साक्षीयां मारी जाती है

कोई नहीं मलाल हमारी दिल्ली में 



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