यह बड़ा शहर भी क्या चीज़ हैं ना
यह बड़ा शहर भी क्या चीज़ हैं ना
हज़ारो लोग, खुद मैं मशगुल;
भूल गये हैं क्या होता हैं बतियाना
यह बड़ा शहर भी क्या चीज़ है ना !
लाखों मकान हैं यहाँ, लाखों दूकान हैं यहाँ,
पर ना कोई मकान घर बना और
ना कोई दूकान दोस्तों का अड्डा
यह बड़ा शहर भी क्या चीज़ है ना !
बस मैं बैठे -बैठे, खिड़की से झांकते झांकते
सोच रही हूं, कहीं मैं भी ना भूल जाऊ घर जाना
यह बड़ा शहर भी क्या चीज़ है ना !
माँ -पापा सोचते हैं कहीं मैं उन्हें भूल ना जाऊं;
कैसे समझाऊ की चुभता हैं दिल मैं,
आपसे हर रोज़ बात ना कर पाना
यह बड़ा शहर भी क्या चीज़ है ना !
बस से उतरों, मेट्रो मैं चढ़ों,
और बस इसी तरह चलते रहो
मानों सब भूल गये हैं क्या होता हैं ठहरना
यह बड़ा शहर भी क्या चीज़ है ना !
जिसे हर कोई बातूनी कहते थे,
खबर आयी हैं उसकी भी
वो ना बतियाने का ढूँढती हैं अब बहाना
यह बड़ा शहर भी क्या चीज़ है ना !
हमने अकेलेपन को आज़ादी
का नाम दे तो दिया हैं
लेकिन कैसे छुपाऊ कि
कितना याद आता हैं घर का खाना
यह बड़ा शहर भी क्या चीज़ है ना !
हँसना -हँसाना और घर का
खाना तक तो ठीक रहा
दिन काटने को हम कह रहे अब जीना
यह बड़ा शहर भी क्या चीज़ है ना !
हर रात आके, तकिये पे
अपनी थकान डाल देती हूँ
नज़र-अंदाज़ करके,
वो सिरहाने पड़ा सपना
यह बड़ा शहर भी क्या चीज़ है ना !