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Divya Naval

Abstract

4.8  

Divya Naval

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यह बड़ा शहर भी क्या चीज़ हैं ना

यह बड़ा शहर भी क्या चीज़ हैं ना

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हज़ारो लोग, खुद मैं मशगुल;

भूल गये हैं क्या होता हैं बतियाना

यह बड़ा शहर भी क्या चीज़ है ना !


लाखों मकान हैं यहाँ, लाखों दूकान हैं यहाँ,

पर ना कोई मकान घर बना और

ना कोई दूकान दोस्तों का अड्डा

यह बड़ा शहर भी क्या चीज़ है ना !


बस मैं बैठे -बैठे, खिड़की से झांकते झांकते

सोच रही हूं, कहीं मैं भी ना भूल जाऊ घर जाना

यह बड़ा शहर भी क्या चीज़ है ना !


माँ -पापा सोचते हैं कहीं मैं उन्हें भूल ना जाऊं;

कैसे समझाऊ की चुभता हैं दिल मैं,

आपसे हर रोज़ बात ना कर पाना

यह बड़ा शहर भी क्या चीज़ है ना !


बस से उतरों, मेट्रो मैं चढ़ों,

और बस इसी तरह चलते रहो

मानों सब

भूल गये हैं क्या होता हैं ठहरना

यह बड़ा शहर भी क्या चीज़ है ना !


जिसे हर कोई बातूनी कहते थे,

खबर आयी हैं उसकी भी

वो ना बतियाने का ढूँढती हैं अब बहाना

यह बड़ा शहर भी क्या चीज़ है ना !


हमने अकेलेपन को आज़ादी

का नाम दे तो दिया हैं

लेकिन कैसे छुपाऊ कि

कितना याद आता हैं घर का खाना

यह बड़ा शहर भी क्या चीज़ है ना !


हँसना -हँसाना और घर का

खाना तक तो ठीक रहा

दिन काटने को हम कह रहे अब जीना

यह बड़ा शहर भी क्या चीज़ है ना !


हर रात आके, तकिये पे

अपनी थकान डाल देती हूँ

नज़र-अंदाज़ करके,

वो सिरहाने पड़ा सपना

यह बड़ा शहर भी क्या चीज़ है ना !


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