मैं एक सिर्फ तुम को चाहूंगा, विरह की वेदना में मिलन की आस बनकर ! मैं एक सिर्फ तुम को चाहूंगा, विरह की वेदना में मिलन की आस बनकर !
कोई तो दूर कर दे मन की थकान को, कोई तो समझ ले मन के अरमान को। कोई तो दूर कर दे मन की थकान को, कोई तो समझ ले मन के अरमान को।
ताकि बड़े होकर मैं अपना बचपन इन कविताओं में दोबारा जी सकूँ। ताकि बड़े होकर मैं अपना बचपन इन कविताओं में दोबारा जी सकूँ।
और एक एक जुड़कर हम ग्यारह बन जाएंगे। और एक एक जुड़कर हम ग्यारह बन जाएंगे।
मैं फिर भी तुमको चाहूंगा धूप में तेरे सर पर छांव का छाता बनकर मैं फिर भी तुमको चाहूंगा धूप में तेरे सर पर छांव का छाता बनकर
फ़िर भी हर पल होठों की ये मुस्कान, शरीर की ये थकान , छोटी मोटी ख़ुशियों के बीच कहीं भूल ही जाते। क... फ़िर भी हर पल होठों की ये मुस्कान, शरीर की ये थकान , छोटी मोटी ख़ुशियों के बीच ...