कभी धूप कभी छाँव
कभी धूप कभी छाँव
ज़िदगी का हर मोड़ है अंजाना
फिर भी कभी लगता जाना पहचाना
भविष्य की धक्का मुक्की में
वर्तमान का खो जाना।
फ़िर भी कभी लगता जाना पहचाना
जिम्मेदारी से भरी जिंदगी ,
कभी भूलती अपनों का साथ,
तो कभी भूल जाते अपना ही हाल।
फ़िर भी हर पल होठों की ये मुस्कान,
शरीर की ये थकान ,
छोटी मोटी ख़ुशियों के बीच कहीं भूल ही जाते।
क्योंकि
जिंदगी का हर मोड़ है अंंजाना ,
फिर भी लगता जाना पहचाना।
वो रोज सुबह स्कूल जाना ,
दोस्तों के संग लंच बॉक्स खाना,
जैसे समुद्र की बड़ी सी खामोशी के बीच
लहरों का शोर मचाना।
उसी तरह बचपन की इन ख़ुशियों का ज़वानी में खो जाना ।
क्योंकि ये सब ही तो है जाना पहचाना।
क्योंकि ये सब ही तो है जाना पहचाना।