समर्पण
समर्पण
मैं नन्ही कली तेरे आँगन की,
फूल बनकर खिल गई।
इतने नाजो से पाला मुुझे,
मैं तेरे आँगन में महक गई।
हर बात निराली आपकी,
मैं गुलशन बनकर महक गई।
तेरा प्यार, तेरा वो दुलार याद रखूँगी,
तेरा वो निःस्वार्थ प्यार हमेशा याद रखूँगी।
खूद तकलीफ सहकर खुश रखा मुझे।
मेरे लिये जो बहाया पसीना,
मेरे लिए की जो इतनी मेहनत,
मुझसे किया इतन प्यार,
मुझपे किये इतने उपकार,
कैसे चुकाऊँगी, कैसेे लौटाऊँगी,
ये सब कुछ तुम्हें।
क्या कहूंँ तेरे इस ढेर सारे प्यार को,
क्या कहूँ ईश्वर की
इतनी खूबसूरत देन को, पापा।
