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Anita Agarwal

Drama Tragedy

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Anita Agarwal

Drama Tragedy

पत्थर

पत्थर

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नींद आती नहीं,

रात जाती नहीं,

खुली पलकों में सदियाँ कटती हैं,

सपने मैं देखूं कैसे ….

शम्मा जलती नहीं,

मैं पिघलती नहीं,

पत्थर की वादियों में है घर मेरा,

आसमानों को मैं रुलाऊँ कैसे….

धूप खिलती नहीं,

पर्छाइंयाँ मिटती नहीं,

हवाएं भी कुछ रूठी हुई सी हैं,

खुशबुएँ मैं पाऊँ कैसे………

बात होती नहीं,

मन भिगोती नहीं,

रास्ते ख़त्म होते हैं चौराहों में,

तुम तक मैं आऊं कैसे…


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