Vivek Madhukar

Drama Tragedy

4.1  

Vivek Madhukar

Drama Tragedy

बैंक - बैलेंस

बैंक - बैलेंस

1 min
23.9K


बैंक-बैलेंस उन्नति अहै सब उन्नति को मूल

बिन मोटे बैलेंस के मिटे न हिय को सूल


कालाबाजारी करि के भए दौलतराम विख्यात

कोयले की दलाली से महल  बनाये  सात

पैसा पानी जैसन बहे तौहू भए खराब

पूत पढ़े-लिखे नाहिं खाली बने नवाब


अंग्रेजी स्कूल को भेंट मा

      टका पचास हज़ार दिए गिन

ऐसे लगे पढ़ने वहाँ

      उनके  प्यारे  बच्चे   तीन

मास्टर साहब घर में आये

      बच्चे  सभी  नदारद

नवाबजादे गए फिल्म

      शाहजादी ब्यूटी-पार्लर !

लड़की ने आठवीं में

           किया स्कूल ड्रॉप

लड़कों की पढ़ाई में भी

   दसवीं के बाद लगी फुलस्टॉप


लड़की की शादी सेठजी ने

      की धूमधाम से

पर निभी नहीं उस नकचढ़ी

      की ससुराल में

सास की तोड़ी टांग

         पति को बेलन मारा

आ बैठी पितृ-धाम

      बाप ठोक रहा सर बेचारा


बड़े लड़के को गद्दी अपनी

          सेठजी ने जब दी

छोटे ने अदालत में

   बाप के खिलाफ केस कर दी

लड़े सरे-आम भाई-भाई

         हुई खूब जग हंसाई

अंत में बात जायदाद के

   आधे-आधे बंटवारे पे आई


बेटे गए विदेश

      लाये ब्याह कर मेम

लुटी घर की शांति,

      भाईचारा और प्रेम

सेठ-सेठानी भए अपने

        घर में जैसे अनजान

बहुएँ लेतीं काम उनसे

      बिल्कुल नौकर समान

हिम्मत सारी जवाब दे गयी

      जीने का जाता रहा उत्साह

सेठ-सेठानी ने होकर लाचार

      सोची करने को आत्मदाह


बेटे-बहुएँ खुश हुए

       इस दुखद वारदात से

मिल रहे थे लाखों टके उन्हें

   इंश्योरेंस के कागज़ात से


जनाज़ा निकाला माता-पिता का

          इस ठाठ-बाट से

लोग बोले निकल गए आगे

      वे राजा-महाराजाओं से !

भोज कराया बेटों ने

        आये लोग दस हज़ार

ज्यों दानवीर कर्ण ने

      लिया हो जन्म दूसरी बार


यह सब जान कवि का मन रोया

क्या यह देखकर भी आज का बाप है सोया ?

अरे ! मन की शांति चाहते हो

   तो बच्चों को

      दौलत में न डुबाओ

उन्हें साथ-साथ

   ज्ञान-गंगा में भी नहलाओ


आज के पूतों !

     कपूत नहीं सपूत बनो

जितने तुम पैसों और

   विलायती पत्नी की अमानत हो

    उसका दसवां भाग भी तो

      माता-पिता के बनो


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Drama