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Shabbir Shaikh Awara alfaz

Drama

1.8  

Shabbir Shaikh Awara alfaz

Drama

वो पंछी की तरह उड़ना चाहती है।

वो पंछी की तरह उड़ना चाहती है।

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हाँँ ! वो उड़ना चाहती है

उड़ना चाहती है

गिरना चाहती है

गिरकर उठना चाहती है

पर वो रुकना नही चाहती,

बस वो उड़ना चाहती है।


जैसे कोई पंछी आसमान में

ऊँची उड़ान भरता है

वैसे ही वो ऊँची उड़ना

भरना चाहती है !

वो पंछी जैसे उड़ना चाहती है...।


बेखौफ़, बेफिक्र, बेपरवाह,

निडर होकर रहना चाहती है।

वो तो अपनी ज़िंदगी जीना चाहती है !

वो पंछी जैसे उड़ना चाहती है...।


रास्ते में रुकावटें कई हैं

सबको जवाब देना है

हर पल को जी जान से जीना है

आसमांं को चीरते

हवाओं में उड़ते समंदर में

उतारकर एक बूंद जैसे

जल बन जाती है,

वैसे ही रिश्तों को छोड़कर

रुकावटों की जंज़ीरो को तोड़कर

अपनी ज़िंदगी की हर लड़ाई

वो जीतना चाहती है।

वो पंछी जैसे उड़ना चाहती है...।


समाज के रीति रिवाज़ो से परे

वो अपनी एक नई दुनिया बनाना चाहती है

जहाँँ वो आज़ादी की ज़िन्दगी जी सके

अपने तरीके से

जहाँँ कोई रोक-टोक न हो

जहाँँ कोई मर्यादा न हो

जहाँँ कोई भेदभाव न किया जाए।

एक ऐसी दुनिया जहाँँ

पंख फैलाकर उड़ा जाए

और हर एक मुमकिन मुकाम

वो हासिल करना चाहती है।

वो पंछी जैसे उड़ना चाहती है...।


उम्र से पहले

कई रिश्तों में बांध दिया गया,

चार दीवारों को घर कह दिया गया

दूसरे के माँ बाप से

अपने माँ बाप की पहचान करवा दी गई

देखते ही देखते इस समाज के बारे में

ज़्यादा सोचने की आदत डाल दी

क्या कुछ करवाया गया इन सब में

पर उसकी मर्ज़ी शामिल न थ

वो तो माता - पिता का सम्मान करना जानती है

वो बस पंछी जैसे उड़ना चाहती है...।


उसकी ज़िंदगी को उससे ज़्यादा समाज ने जिया

और हर एक रिश्ते, रीति, रिवाज़ का ज़हर इसने पिया,

हर एक कदम पर उसको सुनाया जाता

जीना कैसे है ये सिखलाया जाता

और "तू लड़की है !"

- ये हर बार हर बात पे उसे याद दिलाया जाता !

इन्हीं लोगों की सोच को वो बदलना चाहती है।

वो तो बस पंछी जैसे उड़ना चाहती है...।


उसके पहनावे पर लोग उसे नीचा दिखाते हैं

चार लोगों को साथ में लेकर

उस पर टिप्पणियों की बरसात करवाते हैं

इन सब को सुनकर,

अनदेखा करके

वो तो बस आगे बढ़ना चाहती है।

वो तो बस पंछी जैसे उड़ना चाहती है...।


लड़की, बच्ची, औरत,

बूढ़ी, बेटी, बहू, सास, माँ, बीवी,

दादी, मासी, बुआ, मामी,

ऐसे कई नाम हैं उसके

वो इन रिश्तों में बंधी है।

कभी सोचा है कि इन रिश्तों को निभाते - निभाते

वो अपनी पूरी ज़िंदगी बिता देती है

और आखिर में उसे

एक अवार्ड मिलता है -

"शी इज़ जस्ट अ हाउस वाइफ !"

पूरी ज़िंदगी इन रिश्तों का जॉब करके

उसे बेरोज़गार बताया जाता है

यही समाज में सिखलाया जाता है !


आखिर में कई सवाल हैं

जिसके जवाब आप सबको देने हैं

क्योंकि आखिरकार आप भी तो

समाज का हिस्सा हैं !

और इन सबके ज़िम्मेदार हैं !


तो सवाल ये है कि

क्या औरत एक पहेली है ?

क्या समाज की औरतों के प्रति

कभी सोच बदलेगी ?

या यह सीता हमेशा की तरह

अपनी सच्चाई साबित करने के लिए

अग्नि में जलेगी...!


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