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Shambhunath Vishwakarma

Drama Tragedy

4.6  

Shambhunath Vishwakarma

Drama Tragedy

कैसे लिख दूँ

कैसे लिख दूँ

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सुरक्षित नहीं जब बचपन भी

हैवानियत के खेल से

कैसे लिख दूँ कि

इंसानियत अभी ज़िंदा है।


जब पंडित और मौलाना ही

शैतान बने बैठे है,

कैसे लिख दूँ कि

इबादत की ताकत अभी ज़िंदा है।


जब स्कूल ही तय करने लगे

कन्या के अंतर्वस्त्रों का रंग,

कैसे लिख दूँ कि

विद्यालय में शिक्षा अभी ज़िंदा है।


जब बाबाओं पर अंधविश्वास कर

परिवार खुदकुशी कर ले,

तो कैसे लिख दूं कि

ईश्वर पर विश्वास अभी ज़िंदा है।


जब नोंच ले पिता ही

बेटी की इज्ज़त,

तो कैसे लिख दूँ कि

संस्कार अभी ज़िंदा हैं।


जब भाई ही कर दे

बहन का बलात्कार,

तो कैसे लिख दूँ कि

राखी का प्यार अभी ज़िंदा है।


जब टोपी और टीके में

बंट रहे हैं लोग,

तो कैसे लिख दूँ कि

इंसानियत अभी ज़िंदा है।


जब तख्त की ज़ुबाँ

बोलनेे लगे अखबार,

तो कैसे लिख दूँ कि

कलम की ताकत अभी ज़िंदा है...।


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