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पहल की पहल

पहल की पहल

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इस लाल साडीमें,

मेरा मैं भी रोमांचित हो रहा है,

भीतर के नए अंतर्वस्त्रों को भी

खोल देने का मैं कर रहा है,

इस पहली रात को

जाग कर जी भर के

जीने का मन कर रहा है,

तुम दूर से ही मुझे

आकर्षित क्र रहे हो,

अपने सुन्दर गठीले तन से

जिसे अपने पास भींच लेने का

मन कर रहा है.


पर,

न जाने क्या सोचोगे तुम

मेरे और इस पहल के बारे में,

की कहीं कोई चालू लड़की तो नहीं,

कहीं कोई चक्कर तो नहीं रहा होगा,

बहुत खेली होगी और कइयों को घुमाया होगा,

वही बातें जो तुम लड़के,

हम लड़कियों के बारे में कहते हो.


आरमान मेरे भी हैं

तुमसे, अपनी पहली रात से, सुहागरात से,

जीवन की इस नयी शुरुवात से.

न जाने मेरी पहल को किस नज़र से देखोगे ?

मेरे मैं के भावों को क्या सच में तुम समझोगे ?


डरती हूँ की रिश्ते में दरार न आजाए,

बनने से पहले कहीं बिगड़ न जाये.

इसलिए अपने मैं की उमड़ती लहरों को

दबा रही हूँ,

दाँतों से अपने ही होठों को काट रही हूँ,

नहीं चाहती की नवजीवन की नई रात

संदेहों से भर जाये,

इसलिए इंतज़ार कर रही हूँ ताकि

पहल आपसे हो जाए...!


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