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Lalita sharma नयास्था

Abstract Drama

5.0  

Lalita sharma नयास्था

Abstract Drama

मैं शब्दों का सौदागर

मैं शब्दों का सौदागर

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मैं शब्दों का हूँ सौदागर, भावों को तौल रहा हूँ।

आज लहू से मन की गाँठें, धीरे-से खोल रहा हूँ।।


छंद-अलंकारों की भाषा, न करूँ मंचों की आशा।

तन की बातें समझूँ मन से, अंतर्मन की परिभाषा।

मीठी यादें अपने भीतर, होले-से घोल रहा हूँ।

आज लहू से मन की गाँठें, धीरे-से खोल रहा हूँ।।


जीवन-पथ पर चलता साथी,संग दिया ओ बाती।

वाणी मधुमय रस बरसाती, कंठ सदा ही मितभाषी ।

खट्टे-मीठे अनुभव के ही, फिर समय टटोल रहा हूँ।

आज लहू से मन की गाँठें, धीरे-से खोल रहा हूँ।।


जैसी हो शब्दों की टोली, वैसी बनती हमजोली।

संगी-साथी तब तक अपने, जब तक बात पते की बोली। 

मैं शब्दों के भावों से ही, वर्णों को मौल रहा हूँ।

आज लहू से मन की गाँठें, धीरे-से खोल रहा हूँ।।


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