होली में (ग़ज़ल)
होली में (ग़ज़ल)
छलकता जा रहा अपनो का भी यूँ प्यार होली में।
बरसती जा रही ज्यों रंगों की बौछार होली में
।
गुलाबी, लाल, पीले रंग से चेहरे सभी रंगे,
गुलाल ए इश्क़ में होता दिखा संसार होली में।
बिखेरे रंग कुदरत ने सजी दुल्हन सी ये दुनिया,
हुए अम्बर धरा भी लाल अबकी बार होली में।
मचाते धूम थोड़ी और मस्ती में रहे बेसुध,
मजा आता है हम सबको यूँ ही हर बार होली में।
बची फिरती रही सब गोपियाँ, राधा, मगर फिर भी
कन्हैया मारते पिचकारियों की धार होली में।
बिरज से आये बरसाने में होली खेलने कान्हा,
मिली रंगों के बदले लाठियों की मार होली में।
'कमल' ये रंग हाथों से लगेंगे देखना दिल तक,
मिलावट की है इनमें प्यार की इसबार होली में।
