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chandraprabha kumar

Abstract

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chandraprabha kumar

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तेरी रज़ा

तेरी रज़ा

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ऐसी कृपा करो

अज्ञान का पर्दा हटे,

मोह आवरण हटे

तुम्हारा स्वरूप समझूँ। 


भली- बुरी कोई इच्छा न रहे

मैं कुछ भी न चाहूँ,

जो तुम्हारी इच्छा हो

वही होने दो। 


जैसी स्थिति में रखो

जैसे चाहो रखो,

तुम्हारा स्वरूप समझकर

तुम्हारा ही अपना बनूँ। 


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