विरासत
विरासत
ज्यों-ज्यों उम्र बढ़ती गई
लालसा,अभिलाषा और मोह माया में
बड़े गहरे से उतरती गई।
दौलत है अपार
ना जाने, मेरे बाद कैसे चलेगा
मेरे द्वारा सिंचित संसार
एक दिन करने लगी हिसाब
और खोल बैठी दौलत की किताब।
बेशकीमती हीरे नूरानी
माँ, सास के दिए नौलखे हार खानदानी
कीमती गहनें तिजोरी में धर आई
मन के बोझ को हल्का कर आई।
जब कभी तिजोरी को खोलती
मन के अहं भावों से उन्हें तोलती
जी भरके करती उनका दीदार
सब मेरे बेशकीमती नौलखे हार।
बुजुर्ग जहां से मिट गए
नाम विरासत हमारी लिख गए।
मैं भी मरने से डर रही हूं
जो बड़े-बुजुर्गों ने किया
वहीं सब कर रही हूँ।
लिख दूँ अपने गहने,मकान और दुकान
बेटा-बेटी सभी के नाम
विरासतों का दौर चलता रहा
केवल धन संपदा पर नाम बदलता रहा।
पर मैं फिर से करने बैठी हिसाब
खोल बैठी दौलत के दूसरे पन्ने की किताब।
धर्म, कर्म , शिष्टाचार
आदर, मान और सत्कार
सुदृढ़ संपन्न सभ्यता,
संस्कृति अचार और व्यवहार।
संस्कृति और अचार व्यवहार
मेरे मरने के बाद
दिल खोल कर मुट्ठी भर-भर के देना बाँट
सदा खुशहाल रहे मेरा घर द्वार।
तिजोरी से सारे गहने लेना निकाल
ना जाने कितनी विरासतें बीत गई हैं
रखते-रखते इनका ख्याल।
भर देना उसमें सारे कुविचार,
ईर्ष्या-द्वेष, छल कपट
हेरफेर, लोभ और मोह
मैं और मेरे का अहं भाव।
कभी किसी उपकार पर
गलती से भी पड़ने ना पाए छाया प्रतिकार
भूले से भी ना खोलना तिजोरी के द्वार।