STORYMIRROR

Archana kochar Sugandha

Tragedy

4  

Archana kochar Sugandha

Tragedy

आंसुओं की झड़ी

आंसुओं की झड़ी

1 min
373


बाबा की आंखों में 

आंसुओं की झड़ी थी ।

बात बड़ी छोटी 

मगर पीड़ा बहुत बड़ी थी ।


बेटा! पचास साल कमाया है 

खून-पसीना बहाया है 

छोड़ गए मेरी कमाई पर पलने वाले 

बाबा, बुढ़ापे का सहारा 

अब तुम्हारे पास, यह छड़ी है ।


बाबा के नैनों से बरस रही थी 

सावन-भादो की झड़ी ।

घुटने से लाचार हूं 

दो वक्त के खाने को बेजार हूं ।

छोड़ गई वह भी मुझे 

जिससे सात जन्मों की 

जोड़ी लड़ी थी।


बाबा ने खुद को तसल्ली के 

बाम से सहलाया था ।

दो मंजिलें मकान की यह दीवारें 

अब मुझे सहलाती हैं ।


बाबा! कितने जतन से 

तुमने हमें मकान की 

मजबूत नींव में ढ़लवाया था 

अब आंखों की तरह टपक जाता है 

छत का कोई कोना ।


मगर ईंट-गारा-मिट्टी 

बड़ी वफा से साथ निभाते हैं 

इधर-उधर से छितरकर 

उस दरार को भर जाते हैं ।


बाबा ने छत को गौर से निहारा था 

इस पर मैंने धन-दौलत, 

जवानी सब वारा था 

यह वक्त की घड़ी है 

इसी छत को मेरी पड़ी है ।


बाबा ने ठंडी सांस को छोड़ा था 

जब एक-एक करके 

सबने मुख मोडा था 

इसके जर्रे-जर्रे ने 

दिल से नाता जोड़ा था ।


बाबा तुम्हारे टूटने-बिखरने से 

हमारा अस्तित्व भी 

टूट-बिखर जाएगा 

परदेसी बाबू तो 

यहां लौटकर नहीं आएगा।


छत और बाबा के नैनन की 

अविरल झड़ी 

सहारे की एकमात्र छड़ी से 

अंतिम संगम के सुर मिला रही थी।



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy