STORYMIRROR

Namrata Saran

Tragedy

4  

Namrata Saran

Tragedy

एक सच यह भी

एक सच यह भी

1 min
373


टाट के तार तार 

मैले कुचैले थेगलों से 

बुने आशियाने मे 

ज़िन्दगी की कशमकश ,,

मौत को हराने की कवायदे जारी,

हाड को गला देने वाले जाडे मे 

रात दो बदन एक दूसरे को 

ढांकने को आतुर ,,

सुबह के कोहरे की धुंध 

अब छंटने लगी ,

सूरज की मेहरबानी 

टाट से छन छन कर 

टुकडे टुकडे पडने लगी ,

बेटे ने लिहाफ़ से निकाला मुंह बाहर,

आज फिर जीत गयी ममता,

माँ ने अपना सबकुछ औढाकर लाल को 

मौत की चादर ओढ़ ली,,,,,,,,,,


      


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy