एक सच यह भी
एक सच यह भी
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टाट के तार तार
मैले कुचैले थेगलों से
बुने आशियाने मे
ज़िन्दगी की कशमकश ,,
मौत को हराने की कवायदे जारी,
हाड को गला देने वाले जाडे मे
रात दो बदन एक दूसरे को
ढांकने को आतुर ,,
सुबह के कोहरे की धुंध
अब छंटने लगी ,
सूरज की मेहरबानी
टाट से छन छन कर
टुकडे टुकडे पडने लगी ,
बेटे ने लिहाफ़ से निकाला मुंह बाहर,
आज फिर जीत गयी ममता,
माँ ने अपना सबकुछ औढाकर लाल को
मौत की चादर ओढ़ ली,,,,,,,,,,