मृत्यु
मृत्यु


वज्रपात सी घात लगी है
साँसों के इस बंधन को
मृत्यु खड़ी बाँट जोह रही
बेबस तन आलिंगन को
खिले नयन यम दर्श को
अधरों पर बिखरी मुस्कान
लेकर गठरी कर्मों की
तन छोड़ रहा ये पहचान
कुंठित, कुत्सित तन ये
हो जाएगा पल में खाक
गंगा दर्शन को तरसेगा
बंद मटकी में बन राख
हृदय विदिर्ण हो उठेगा
देखकर सब ये हालात
तन-मन भर जाएंगे सब
उभरेंगे दर्द के जज्बात।