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राठौड़ मुकेश

Others

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राठौड़ मुकेश

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रिश्तों का संतुलन

रिश्तों का संतुलन

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संदेह पला, घर परिवार में।

रिश्ते बंटे, माटी की दीवार में।


जागा है अहं, थोड़ी तकरार में।

घुला जहर, मधुरम प्यार में।


भूले संस्कार, स्वार्थ की बयार में।

भीगे नयना, बसंत बहार में।


खींचें औजार, क्षणिक आवेश में।

लहू पसरा, गृह परिवेश में।


मौन है द्वार, रोती रही देहरी।

समेटे ग़म, मौन हुआ प्रहरी।


मुरझा गया, रिश्तों का उपवन।

ढहा महल, बिगड़ा संतुलन।



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