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Rajeev Rawat

Abstract Inspirational

5.0  

Rajeev Rawat

Abstract Inspirational

हिन्दी हमारी राष्ट्र भाषा - - दो शब्द

हिन्दी हमारी राष्ट्र भाषा - - दो शब्द

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जिसकी न हो 

अपनी धरती, न हो कोई भाषा

किसी राष्ट्र की कोई कैसे, सम्पूर्ण करे परिभाषा

नारी के सौंदर्य को जैसे प्रदीप्त करे है बिन्दी

वैसी उज्ज्वल किरण बिखेरे अपनी भाषा हिन्दी

अपने आंगन पली बढ़ी, यौवन भर पायी हिन्दी

कुछ दुशासन खींच रहे हैं, उसके तन की चिंदी

धरती मां ने हमें जन्म दिया और भाषा ने हमको शब्द दिये

दोनों ने ही तो मिल कर हमारे जीवन के प्रारब्ध लिखे

फिर हम अपनी मां और भाषा से दूर भले क्यों होते हैं

धुंधली आंखों के सपने और भिंगे शब्द क्यों रोते हैं

जिनको अपनी मातृभूमि के गौरव का अभिमान नहीं

अपनी भाषा के शब्दों पर, होता है स्वाभिमान नहीं

राष्ट्रप्रेम की भावनाओं का, जिनको होता नहीं है अर्थ

उन नरों का जीवन भी क्या है, सम्पूर्ण रुप से व्यर्थ

कृष्ण बनो तुम कोई दुशासन, हर न पाये चिंदी

युगयुगांतर तक गूंजे, बस चहूँ दिशा में हिन्दी

आज भी हमरे गवई गांव में, जब सावन महकेगा

 ढोल मजीरा की गूंजो से, घर आंगन चहकेगा

आल्हा की ताने महकेंगी, कोई कबीरा गाये

सूरदास के आंगन अब भी, वंशी श्याम बजाये

त्याग कर अपनी धरती भाषा, ओरों से जिनको प्यार है

उनका जीना भी क्या जीना, जीवन को धिक्कार है

जो अपनी भाषा का रखते हैं मान नहीं

उनको अपनी इस पावन धरा पर, रहने का अधिकार नहीं

युग उनको नहीं क्षमा करेगा, जिन्हें घेरे रहे हताशा

किसी राष्ट्र की कोई कैसे, सम्पूर्ण करे परिभाषा

मां पिता, भैया और बहना बड़े प्यार से कहते थे हिंदी में

अब मोम डैड, सिस और ब्रो कहते जाने किस शर्मिंदगी में

अपनी भाषा, अपने शब्दों का, यदि करते हम सम्मान नहीं

उनको क्या शब्द कहें हम जिन्हें निज गौरव का ज्ञान नहीं

छल करते हैं जो अपनी भाषा मां से ऐसे ही छल छदों से

हम हारे कई युद्ध जीतकर हैं अक्सर ऐसे ही जयचंदों से

माना मां देती जन्म हमें पर शब्द देते अहसासों की भाषा

पर हम कितने निष्ठुर बन कर, बोलते हैं दूसरे की भाषा

हिन्दी को हम सब मिलकर फैलायें विश्व में ऐसी लिए हूं आशा

जिसकी न हो अपनी धरती, न हो कोई भाषा

किसी राष्ट्र की कोई कैसे, सम्पूर्ण करे परिभाषा



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