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Rajeev Rawat

Tragedy Inspirational

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Rajeev Rawat

Tragedy Inspirational

तृप्ति की तलाश में--दो शब्द

तृप्ति की तलाश में--दो शब्द

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तृप्ति की तलाश में

चाहतें लिए अतृप्त मन की भटकने-

खोजती सी भटकती रहीं, ढोती रहीं, 

जब तलक जिंदगी रह गयी पलों में सिमटने-

अजीब है जिन्दगी की चाहतों की उलझनें-

ऊन के धागे से गुथती रहीं एक दूजे में, 

गुजर गयी जिंदगी एक एक गांठ सुलझने-

चाहतों और आकांक्षाओं के परों पर

उड़ता रहा पंछी सा मन का चंचल जीव भी-

जब श्वास थी शेष थमा जरा नहीं 

जब तलक न हुआ निर्जीव भी-

धड़कनें लिखती रही गाथा जिंदगी की-

पर शब्द सीमित थे यहाँ सिवा बंदगी की-

हर तरफ स्वार्थ के हस्ताक्षरों ने लिख दिया था भाग्य को-

कीचड़ में सने पंख न काट सके दुर्भाग्य को-

कौन सुनता है भला यहां पर सत्य के चीत्कार को-

द्रोपदी के वस्त्र हरण को करता है स्वीकार जो-

जहां पर स्त्रीत्व-लज्जा की कृत्रिम में ढाल में 

पाच-पांच पतियों की पत्नी पांचाली बनी-

जहां सीता की पवित्रता लांछन से सनी-

कौन मानव, कौन दानव, यह परिभाषित करता कौन है-

प्रारब्ध लिखने वाला जब होता मौन है-

अब तो सोच भी गिरवी पड़ी-

अब चारों से गंध सी आती सड़ी-

राख के ढेर में शोले लगे हैं दहकने-

तृप्ति की तलाश में

चाहतें लिए अतृप्त मन की भटकने-

खोजती सी भटकती रहीं, ढोती रहीं

जब तलक जिंदगी रह गयी पलों में सिमटने-

अजीब है जिन्दगी की चाहतों की उलझनें-



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